बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

हरदिलअज़ीज़ शायर शहरयार साहब गुज़र गए. वह कहा करते थे कि कोई दौर वापस आता है और न ही आना चाहिए, कोई भी अच्छी चीज़ ख़त्म नहीं होने वाली, नई चीज़ें आती रहेंगी और दुनिया फैलती रहेगी. हम उनकी इन बातों को मंत्र की तरह लेते हैं. संयोग की बात यह है कि महाराष्ट्र के ज़िला ठाणे से प्रकाशित होने वाली हिंदी मासिक पत्रिका 'मीरा-भायंदर दर्शन' के संपादक वेद प्रकाश श्रीवास्तव ने वर्ष 2011 के जनवरी महीने में जब एक ट्रेन यात्रा के दौरान मुझसे अपने यहाँ कविताओं का सिलसिला शुरू करने को कहा तो पहली ही प्रस्तुति यानी मार्च 2011 के अंक में शहरयार साहब की ग़ज़लें शामिल हुईं थीं. निदा फ़ाज़ली साहब की चंद उम्दा ग़ज़लें भी इसमें थीं.इस प्रस्तुति का लक्ष्य क्षेत्र के पाठकों को कुछ अच्छी शायरी और कविताओं से रूबरू कराना था. अप्रकाशित कवितायेँ छापना न उद्देश्य था और न ही आग्रह. फिर इस पत्रिका का वितरण भी पिछले १५ वर्षों से एक सीमित दायरे में होता आया है इसलिए पाठकों की रूचि का भी ध्यान रखना था. बहरहाल सिलसिला सचमुच चल निकला और अब एक साल पूरा हो गया है. इस प्रयास में देश के बड़े कवियों ने अपनी कवितायेँ छापने की स्वीकृति देकर मुझे उपकृत किया है.स्थानीय मित्रों के आग्रह पर अब पाठक वर्ग का दायरा बढ़ाने जा रहा हूँ. हर माह इस पत्रिका के दोनों कविता पृष्ठों की पीडीऍफ़ 'फेसबुक' और अपने ब्लॉग 'आजाद लब' में प्रकाशित किया करूंगा. फ़ाइल पर चटका लगाकर उस अंक के कवियों/शायरों का परिचय और कवितायेँ/ग़ज़लें पढ़ी जा सकती हैं. प्रस्तुत हैं ज्ञानपीठ विजेता शहरयार और उस्ताद शायर निदा फ़ाज़ली साहब-




मेरी नई ग़ज़ल

 प्यारे दोस्तो, बुजुर्ग कह गए हैं कि हमेशा ग़ुस्से और आक्रोश में भरे रहना सेहत के लिए ठीक नहीं होता। इसीलिए आज पेश कर रहा हूं अपनी एक रोमांटि...