शनिवार, 10 मई 2008

(शहीदगाथा-३): अमर शहीद यतींद्र नाथ मुखर्जी की बलिदान गाथा

1857, the first war of Indian Independence. साथियो, आज १८५७ में हुई आज़ादी की पहली लड़ाई की १५०वीं वर्षगाँठ का साल भर चला जलसा पूरा हुआ. इस लड़ाई से भारतवासियों ने यह सीखा था कि अंग्रेज अजेय नहीं हैं और न ही इतने सभ्य, जैसा कि वे दावा करते आए थे. देशवासियों को अहसास हो चुका था कि अंग्रेजों से जूझा जा सकता है और उन्हें भारत से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है. इसी भावना के चलते आगे चलकर क्रांतिकारियों ने योजनाबद्ध अभियान छेड़ा और देश के अलग-अलग कोनों में आज़ादी का बिगुल फूक दिया. आज हम अमर शहीद यतींद्र नाथ मुखर्जी का बलिदान स्मरण कर रहे हैं.


यतींद्र नाथ मुखर्जी का जन्म जैसोर जिले में सन् १८८० ईसवी में हुआ था। पाँच वर्ष की अल्पायु में ही उनके पिता का देहावसान हो गया. माँ ने बड़ी कठिनाई से उनका लालन-पालन किया. १८ वर्ष की आयु में उन्होंने मैट्रिक पास कर ली और परिवार के जीविकोपार्जन हेतु स्टेनोग्राफी सीखकर कलकत्ता विश्वविद्यालय से जुड़ गए.


वह बचपन से हई बड़े बलिष्ठ थे। सत्यकथा है कि २७ वर्ष की आयु में एक बार जंगल से गुजरते हुए उनकी मुठभेड़ एक चीते से हो गयी. उन्होंने चीते को अपने हंसिये से मार गिराया था. इस घटना के बाद यतीन नाम से वह विख्यात हो गए थे.


उन्हीं दिनों अंग्रेजों ने बंग-भंग की योजना बनायी। बंगालियों ने इसका विरोध खुल कर किया. यतींद्र नाथ मुखर्जी का नया खून उबलने लगा. उन्होंने साम्राज्यशाही की नौकरी को लात मार कर आन्दोलन की राह पकड़ी. सन् १९१० में एक क्रांतिकारी संगठन में काम करते वक्त यतींद्र नाथ 'हावड़ा षडयंत्र केस' में गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें साल भर की जेल काटनी पड़ी. जेल से मुक्त होने पर वह 'अनुशीलन समिति' के सक्रिय सदस्य बन गए और 'युगान्तर' का कार्य संभालने लगे. उन्होंने अपने एक लेख में उन्हीं दिनों लिखा था-' पूंजीवाद समाप्त कर श्रेणीहीन समाज की स्थापना क्रांतिकारियों का लक्ष्य है. देसी-विदेशी शोषण से मुक्त कराना और आत्मनिर्णय द्वारा जीवनयापन का अवसर देना हमारी मांग है.'


क्रांतिकारियों के पास आन्दोलन के लिए धन जुटाने का प्रमुख साधन डकैती था। दुलरिया नामक स्थान पर भीषण डकैती के दौरान अपने ही दल के एक सहयोगी की गोली से क्रांतिकारी अमृत सरकार घायल हो गए. विकट समस्या यह खड़ी हो गयी कि धन लेकर भागें या साथी के प्राणों की रक्षा करें! अमृत सरकार ने यतींद्र नाथ से कहा कि धन लेकर भागो. यतींद्र नाथ इसके लिए तैयार न हुए तो अमृत सरकार ने आदेश दिया- 'मेरा सिर काट कर ले जाओ ताकि अंग्रेज पहचान न सकें.'


इन डकैतियों में 'गार्डन रीच' की डकैती बड़ी मशहूर मानी जाती है। इसके नेता यतींद्र नाथ मुखर्जी थे. विश्व युद्ध प्रारंभ हो चुका था. कलकत्ता में उन दिनों राडा कम्पनी बंदूक-कारतूस का व्यापार करती थी. इस कम्पनी की एक गाडी रास्ते से गायब कर दी गयी थी जिसमें क्रांतिकारियों को ५२ मौजर पिस्तौलें और ५० हजार गोलियाँ प्राप्त हुई थीं. ब्रिटिश सरकार हो ज्ञात हो चुका था कि 'बलिया घाट' तथा 'गार्डन रीच' की डकैतियों में यतींद्र नाथ का हाथ था.


एक दिन पुलिस ने यतींद्र नाथ का गुप्त अड्डा 'काली पोक्ष' ढूंढ़ निकाला। यतींद्र बाबू साथियों के साथ वह जगह छोड़ने ही वाले थे कि राज महन्ती नमक अफसर ने गाँव के लोगों की मदद से उन्हें पकड़ने की कोशश की. बढ़ती भीड़ को तितरबितर करने के लिए यतींद्र नाथ ने गोली चला दी. राज महन्ती वहीं ढेर हो गया. यह समाचार बालासोर के जिला मजिस्ट्रेट किल्वी तक पहुंचा दिया गया. किल्वी दल बल सहित वहाँ आ पहुंचा. यतीश नामक एक क्रांतिकारी बीमार था. यतींद्र उसे अकेला छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे. चित्तप्रिय नामक क्रांतिकारी उनके साथ था.


दोनों तरफ़ से गोलियाँ चली। चित्तप्रिय वहीं शहीद हो गया. वीरेन्द्र तथा मनोरंजन नामक अन्य क्रांतिकारी मोर्चा संभाले हुए थे. इसी बीच यतींद्र नाथ का शरीर गोलियों से छलनी हो चुका था. वह जमीन पर गिर कर 'पानी, 'पानी' चिल्ला रहे थे. मनोरंजन उन्हें उठा कर नदी की और ले जाने लगा. तभी अंग्रेज अफसर किल्वी ने गोलीबारी बंद करने का आदेश दे दिया.


गिरफ्तारी देते वक्त यतींद्र नाथ ने किल्वी से कहा- 'गोली मैं और चित्तप्रिय ही चला रहे थे। बाकी के तीनों साथी बिल्कुल निर्दोष हैं.'


...और अगले दिन भारत की आज़ादी के इस महान सिपाही ने अस्पताल में सदा के लिए आँखें मूँद लीं। लेकिन आख़िरी सफ़र के वक्त भी उनके होठों पर ये बोल थे-


सूख न जाए कहीं पौधा ये आज़ादी का
खून से अपने इसे इसलिए तर करते हैं
दर-ओ-दीवार पर हसरत से नज़र करते हैं
खुश रहो अहल-ए-वतन, हम तो सफ़र करते हैं.

जय हिंद!

'मीरा-भायंदर दर्शन' द्वारा प्रकाशित 'शहीदगाथा' से साभार, प्रस्तुतकर्ता: सीपी सिंह 'अनिल'

3 टिप्‍पणियां:

  1. यतिन सचमुच अमर हो गए. चीते को मार गिराने की वजह से ही इन्हें बंगाल में 'बाघा जोतिन' के नाम से भी जाना जाता है.
    प्रस्तुति के लिए धन्यवाद सर.

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  2. Thank you for this timely contribution. Please complete the Hindi article on Jatindranath Mukherjee for Wikipedia.
    Congratulations.
    P. Mukherjee
    Paris

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  3. The English text of Wikipedia is very authentic as far as historical research is concerned. Please rectify the data as much as possible so that a proper homage is paid to this mahaanaayaka. Sincere thanks from
    BobClive
    4 August 2008

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